हे पार्थ! वही यह भूतसमुदाय उत्पन्न हो-होकर प्रकृति वश में हुआ रात्रि के प्रवेश काल में लीन होता है और दिन के प्रवेश काल में फिर उत्पन्न होता है॥19॥