श्रीगणेश पृथ्वी प्रवास
जब श्रीगणेश का अंतिम अवतार गजानन पृथ्वी से जाने लगे तो माता पृथ्वी ने उन्हें यहीं रुकने को कहा। श्रीगणेश ने पृथ्वी पर रुकने में असमर्थता जताई और पृथ्वी से वादा किया कि हर वर्ष वे अपने जन्मदिन यानी भाद्रपद मास की शुक्ल चतुर्थी (इस वर्ष 25 अगस्त) को पृथ्वी पर दस दिन के लिए आएंगे और अनन्त चतुदर्शी( इस वर्ष 5 सितम्बर) तक रहेंगे।
हम लोग एक गणेश जी की मूर्ति ला कर् उसमे प्राण प्रतिष्ठा कर् लेते हैं। और एक मेहमान की तरह उनकी दस दिन आवभगत करते हैं। फिर चतुर्दशी को गणेश जी मूर्ति से निकल जाते हैं और मूर्ति मृत हो जाती है। मृत शरीर घर में नही रखा जाता इस लिए हम उसे विसर्जन कर् देते हैं।
ऐसा मानते हैं कि दस दिन घर पर रुके हुए गणेश घर के सदस्यों के सभी कष्ट जान जाते हैं और अपने लोक लौट कर सभी कष्टों को समाप्त कर देते हैं।
चोल राजाओं द्वारा शुरू यह उत्सव मराठा राजाओं द्वारा भी मनाया जाता रहा। बाल गंगाधर तिलक जी ने इसे स्वतन्त्रता संग्राम के लिए भीड़ इकट्ठी करने के लिए आम लोगों का उत्सव बना दिया। और गणपति उत्सव महलों से निकल कर घर घर में मनाया जाने लगा।



