मूलतः अठारह सिद्धियाँ अर्थात दैवीय शक्तियां होती हैं। ये अठारह सिद्धियाँ कुछ इस प्रकार हैं -
१. अणिमा - अपने शरीर को सूक्ष्म करने की सिद्धि। इससे शरीर को अणु के सामान सूक्ष्म किया जा सकता है।
२. महिमा - शरीर को अनंत विशाल आकार का करने की सिद्धि।
३. गरिमा - अत्यंत भारी हो जाने की सिद्धि।
४. लघिमा - अत्यंत हल्का हो जाने की सिद्धि।
५. प्राप्ति - किसी भी स्थान पर अप्रतिबंधित और असीमित आगमन की सिद्धि।
६. प्रकामब्या - किसी की भी कामनाओं को समझने की सिद्धि।
७. ईशित्व - ईश्वरत्व को पाने की सिद्धि।
८. वशित्व - हर वस्तु को वश में करने की सिद्धि।
९. सर्वकामावसायिता - हर वस्तु और कार्य में बस जाने की सिद्धि।
१०. सर्वज्ञता - हर वस्तु का ज्ञान प्राप्त करने की सिद्धि।
११. दूरश्रवण - दूर तक सुन सकने की सिद्धि।
१२. परकाया प्रवेश - किसी के भी शरीर में प्रवेश कर सकने की सिद्धि।
१३. वाक - तीव्र ध्वनि में बोलने की सिद्धि।
१४. कल्पवृक्षत्व - हर मनोकामना को पूर्ण करने की सिद्धि।
१५. सृष्टिशक्ति - सृजन करने की सिद्धि।
१६. संहारशक्ति - अंत करने की सिद्धि।
१७. अमरत्व - अमर हो जाने की सिद्धि।
१८. सर्वाग्रगण्यता - सभी से उच्च होने की सिद्धि।
सिद्धिदात्री माता इन्ही सिद्धियों की स्वामिनी हैं। भोले नाथ इन सभी सिद्धियों में परिपूर्ण हैं और स्वयं सिद्धिदात्री माता (जो पार्वती का रूप हैं) भोलेनाथ की पत्नी हैं।
