शुकदेव जी श्रीमद भगवत की कथा राजा परीक्षित को सुना रहे हैं -
शरद पूर्णिमा की रात्रि को महारास का निमंत्रण भेजा गया वृज की सभी गोपियों को। श्री कृष्ण अपनी भक्तों की उनके प्रति समर्पण जांचना चाहते थे। सभी गोपियाँ समाज की सोच को नज़रअंदाज़ करते हुए अपने प्रेम और भक्ति की परीक्षा देने वृन्दावन पहुंच गयीं श्री कृष्ण के साथ महारास का हिस्सा बनने।
श्री कृष्ण ने उनका स्वागत किया। और परीक्षा लेने के लिए श्री कृष्ण बोले - हे गोपियों, तुम्हारे जैसी चरित्रवान नारियों को इस प्रकार रात्रि में किसी पराये पुरुष से मिलने की आज्ञा नहीं है। जाओ वापस वृज लौट जाओ।
श्री कृष्ण के शब्दों से गोपियों का ह्रदय टूट गया। अत्यंत दुःख के साथ वो बोलीं - हमारे पैर हमें तुम्हारे कमल चरणों से दूर नहीं जाने देंगे। तुम ही बताओ हम वृज कैसे जाएँ?
गोपियों के भाव और उनकी श्रद्धा देख कर श्री कृष्ण ने महारास का आरम्भ किया। गोपियों के जितने अपने रूप प्रकट किये और सभी के साथ नृत्य और डांडिया खेला।
अभिमान में गोपियाँ बोलीं - किसी की भक्ति हमारी भक्ति से उच्च नहीं है और इसीलिए कान्हा हमारी तरफ हैं।
ईश्वर के इस महारास को ईश्वर की कृपा ना समझ कर उनका दम्भ उनकी भक्ति से ऊँचा हो गया। पल भर में श्री कृष्ण गायब हो गए। गोपियाँ अपने कथन पर पछताने लगीं। कृष्ण को पुकारने लगीं। उनकी लीलाओं को याद कर कर के रोने लगीं। दुःख भरे और विरह के गीत गाने लगीं।
शुकदेव जी कहते है - हे परीक्षित! सभी रातों से बढ़कर शरद पूर्णिमा की रात सबसे प्रतापी होती है। गोपियों के संग, सभी को अपनी लीलाओं से मंत्र मुग्ध करते हुए श्री कृष्ण यमुना के किनारे घूम रहे हैं।
जय श्री कृष्णा